केपीएमजी की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021 तक भारत में ऑनलाइन एजुकेशन के 96 लाख यूजर्स होंगे। वर्ष 2016 तक यह आंकड़ा 16 लाख था। वहीं एजुकेशन टेक्नोलॉजी प्लेटफॉर्म ग्रेडअप ने हाल ही में जेईई, नीट, गेट, एसएससी और बैंकिंग जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले लगभग 10,000 स्टूडेंट्स के बीच ऑनलाइन और ऑफलाइन मोड में तैयारी को लेकर सर्वे कराया है। सर्वे के मुताबिक लगभग 90 प्रतिशत स्टूडेंट्स ने ऑफलाइन मोड की तुलना में ऑनलाइन मोड को वरीयता दी है।
ऑनलाइन तैयारी को प्रिफरेंस देने के पीछे प्रतिभागियों ने घर से तैयारी करने की अनुकूलता और ऑनलाइन लाइव क्लासेस को अटैंड करने की सुविधा बताया है। हालांकि ऑफलाइन प्रिपरेशन करने वाले प्रतिभागियों के अपने तर्क हैं। नीट 2019 की परीक्षा में तीसरा स्थान पाने वाले अक्षत कौशिक के अनुसार ऑनलाइन प्रिपरेशन अच्छा टूल हो सकता है, लेकिन यह कोचिंग का पूरी तरह विकल्प फिलहाल नहीं है।
ऑनलाइन प्रिपरेशन की खूबियां और खामियां
खूबियां
- गवर्नमेंट प्रतियोगी परीक्षाओं की यदि बात करें तो ई-लर्निंग हाल में नए डेवलपमेंट के रूप में सामने आया है। ऑडियो-विजुअल के साथ लिखित में भी शानदार स्टडी मटेरियल का रिसोर्स इससे स्टूडेंट को मिलता है। यदि इसकी खामी की बात की जाए तो रिमोट एरिया में इंटरनेट ना होना एक बड़ी बाधा है। हालांकि सब-स्टैंडर्ड कोचिंग संस्थान के अच्छे विकल्प के रूप में इसने खुद को साबित किया है।
- सेल्फ स्टडी फॉर्मेट- गवर्नमेंट प्रतियोगी परीक्षाओं की ऑनलाइन तैयारी करने का सबसे बड़ा फायदा इसका प्रतिभागियों में सेल्फ स्टडी की क्षमता का विकास करना है। विशेषज्ञों के अनुसार सेल्फ स्टडी तैयारी का सबसे अच्छा और प्रभावशाली तरीका है। प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए यह और भी प्रभावशाली है। यह कैंडिडेट्स में तैयारी को लेकर केवल रणनीत बनाने, गति निर्धारित करने में ही सहायता नहीं करता बल्कि यह स्टूडेंट की कमजोरी और क्षमताओं को भी तय करता है।
- टाइम मैनेजमेंट और डिसिप्लिन- पढ़ाई अथवा प्रोफेशनल जॉब के साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स ऑनलाइन कोचिंग ज्वॉइन करके दूसरी जिम्मेदारियों के साथ तैयारी कर सकते हैं।
खामियां
ऑनलाइन तैयारी की तीन मुख्य खामियों होती है।
- सबसे बड़ी कमी इसकी सीमित पहुंच होती है। देश के कई हिस्सों में इंटरनेट की पहुंच नहीं है। ऐसे में प्रतियोगी परीक्षा में अधिक भागीदार ग्रामीणों के लिए ऑनलाइन ऑप्शन आज भी उपयोगी विकल्प नहीं बन पाया है।
- दूसरी कोचिंग क्लास की तरह मेंटरशिप की कमी। ऑनलाइन तैयारी के लिए स्टूडेंट के पास स्टडी मटेरियल तो काफी होते है, लेकिन उन्हें सही गलत बताने वाले लोग नहीं मिलते।
- तीसरी,ऑनलाइन तैयारी कर रहे स्टूडेंट के पास स्टडी मटेरियल की भरमार होती है। इसमें कोचिंग सेंटर से लेकर इंडीविजुयल एक्सपर्ट के तैयार किए मटेरियल शामिल है। लेकिन इनमें बहुत से कम उपयोगी और आउटडेटेड भी होते है। ऐसे में सही और अच्छे स्टडी मटेरियल का चुनाव एक बड़ी चुनौती है।
ऑफलाइन कोचिंग के फायदे और नुकसान
फायदे
- गाइडेंस- कोचिंग संस्थाओं से स्टूडेंट को मिलने वाला सबसे बढ़ा फायदा गाइडेंस और मेंटरशिप का है। कोचिंग संस्थानों में पढ़ाने वाले टीचर्स के पास प्रतियोगी परीक्षाओं का बड़ा अनुभव और ज्ञान होता है। इसलिए वे अभ्यर्थी को उनकी स्किल बढ़ाकर और उनकी कमजोरियों को क्षमता में बदलकर सफलता की ओर मोड़ सकते हैं।
- स्टडी मटीरियल- कोचिंग संस्थानों द्वारा स्टूडेंट्स को दिया जाने वाला स्टडी मटीरियल भी एक तरह का पैकेज होता है जो एक्सपर्ट द्वारा संबंधित एग्जाम से जुड़े पैटर्न का डिटेल एनालिसिस करने और गहरे अध्ययन के बाद तैयार किया जाता है। कोचिंग संस्थानों द्वारा तैयार किया गया स्टडी मटीरियल परीक्षा में आने वाले प्रमुख टॉपिक को उनकी प्रमुखता के आधार पर टार्गेट एप्रोच के साथ कवर करता है, जिससे एग्जाम को क्रैक करने में आसानी होती है।
नुकसान
- सब-स्टैंडर्ड टीचिंग- देश में कोचिंग संस्थानों की सबसे अधिक आलोचना गुणवत्ताहीन शिक्षण व्यवस्था को लेकर ही होती है। कुछ संस्थानों को यदि छोड़ दिया जाए तो सामान्यत: यह देखने में आता है कि शासकीय प्रतियोगी परीक्षाओं को क्लियर करने में असफल रहने वाले स्टूडेंट्स को कोचिंग संस्थान अपने यहां फैकल्टी के रूप में रख लेते हैं। इन लोगों के पास प्रतियोगी परीक्षाओं से जुड़े अनुभव और जानकारी तो होती है, लेकिन शिक्षक के रूप में उसे डिलिवर करने की जो क्षमता होनी चाहिए वह नहीं होती। यानी वे एक शिक्षक बनने के योग्य नहीं होते। इस तरह संस्थानों का शैक्षणिक स्तर गिरता है।
- कम गुणवत्तायुक्त स्टडी मटीरियल- निश्चित तौर पर कई कोचिंग संस्थानों द्वारा स्टूडेंट्स को उपलब्ध कराया जाने वाला स्टडी मटीरियल तैयारी में सहायक होता है, लेकिन विस्तार से देखें तो कई संस्थानों में दिए जाने वाले स्टडी मटीरियल आउटडेटेड और पांपरिक ट्रेंड वाले होते हैं। अपडेट न होने के कारण इससे सफलता मिलने के अवसर कम हो जाते हैं जबकि शासकीय प्रतियोगी परीक्षाओं में कॉम्पिटिशन लगातार बढ़ रहा है। उसका पैटर्न और सिलेबस भी बदल रहा है।